जो पावन शहर था मेरा, शर्मसार हो गया है
किसके कानों में चीख़ें, वज़ीर भी बहरा हो गया है
हैवानों ने छीन लिया बचपन नन्ही बच्ची का भी
कुछ देर तक थी जो रोशनी, कुछ पलो मैं ही अँधेरा हो गया है
ना चल पाती है एक डगर वो अकेली, आजकल हर बस्ती में रावण नज़र आता है
मैं ये कैसे मान लूँ की रोशन है राष्ट्, अगर बिन साथी उसे हर डगर अंधेरा नज़र आता है
आइए मिलकर भारत मै एक ऐसे वातावरण बनाएं
मुस्कान भर दे उसके जीवन मैं आंसू ना कभी उसकी आंखें से छलक पाइए
मैं ये कैसे मान लूँ की रोशन है राष्ट्, अगर बिन साथी उसे हर डगर अंधेरा नज़र आता है
आइए मिलकर भारत मै एक ऐसे वातावरण बनाएं
मुस्कान भर दे उसके जीवन मैं आंसू ना कभी उसकी आंखें से छलक पाइए
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